
लघु कथा _ रावण दहन।
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
आज विजयादशमी दिन मोहल्ले में रावण दहन की तैयारी चल रही थी ।दरअसल रावण दहन अधर्म पर धर्म की असत्य पर सत्य की विजय का प्रतिक है।आज ही के दिन मां दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध करने के बाद महिषासुर का बध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण का संहार कर माता सीता को उसके बंधन से मुक्त कराकर अयोध्या की ओर प्रस्थान किया था। सबने रावण दहन हेतु मुख्य अतिथि के लिए नेता जी को निमंत्रित किया था।उनको धनुष पर जलते हुए बाण से रावण के पुतले पर चलाकर उसका दहन करना था। नेता जी पर कई बलात्कार , हत्या और अपहरण के मामले दर्ज थे।किसी ने कहा नेता जी खुद रावण से बढ़कर है ।उससे रावण दहन कराकर विजया दशमी का अपमान करना है। उनका नाम मुख्य अतिथि से हटाकर एक सभ्य ,संस्कारी और चरित्रवान शिक्षक को मुख्य अतिथि बना दिया और और उनके हाथो से रावण दहन करा दिया.रावण धू धू कर जल रहा था।लोग खुशी से जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे।खूब आतिशबाजी हो रही थी। तभी नेता जी अपने गुंडों के साथ पूरे हथियार सहित पहुंच कर सबको धमकाते हुए बोले _ मुझे मुख्य बनाकर फिर मना कर दिया ।मैं सबको जान से मार दूंगा । कमिटी वालो ने कहा _ आपके अंदर अभी भी रावण जिंदा है।शायद इसलिए नही बुलाया गया ।अपने अंदर के रावण को जला दे फिर आपके हाथो रावण का दहन कराएंगे।
लेखक _ श्याम कुंवर भारती बोकारो,झारखंड, मो.9955509286