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मनहूस कोठी
Story

#**मनहूस कोठी **

लेखक: श्याम कुंवर भारती

रामजीलाल जी सेवानिवृत हो गए थे।सरकारी नौकरी थी ।बड़े ओहदे पर थे ।तनख्वाह भी अच्छी थी।दो बेटे थे दोनो की नौकरी लग चुकी थी ।दोनो अलग अलग शहर में रहकर अपनी नौकरी कर रहे थे ।बड़ा बेटा प्राइवेट कंपनी में और छोटा बेटा सरकारी विभाग में कार्यरत था।पैसे कौड़ी की कोई कमी नही थी । उनकी दोनो बहुएं और उनकी पत्नी प्रभावती उनके साथ ही एक किराए के मकान में रह रहे थे। लेकिन अब मकान छोटा पड़ रहा था।गांव पर बड़ा मकान था ।खेती बारी थी ।लेकिन कोई देख देख करनेवाला नही होने के कारण मकान जीर्ण शीर्ण हो चुका था ।किसी के रहने लायक नहीं बचा था। इसलिए रामजी ने उसी शहर में वर्षो पुरानी एक खाली बड़ी कोठी को अपने पीएफ के पैसे से लेने का विचार किया।

वो कोठी बड़ी होने के बाद भी काफी सस्ते में मिल रही थी ।इसी लालच में वो उसे लेना चाहते थे।परिवार अब बड़ा हो रहा था ।दोनो बेटो के के भी एक एक बच्चे हो चुके थे। सस्ते के चक्कर में रामजी ने आव देखा न ताव बस फटाफट सौदा तय कर दिया ।करोड़ों की कोठी पच्चीस लाख में तय हो गई। वे बहुत खुश थे की इतनी महंगी कोठी बड़े सस्ते में पट गई थी ।किसी से पूछा न समझा की क्यों इतनी बड़ी और महंगी कोठी सालो से वीरान और सुनसान पड़ी है।और क्यों इतने सस्ते में मिल रही है।

जिस दिन वे कोर्ट जा रहे थे कोठी की रजिस्ट्री कराने उस दिन उनकी कार का एक्सीडेंट होते होते बचा ।भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा किया की उनकी जान बच गई। मकान मालिक के साथ उनका एग्रीमेंट हो गया।उन्होंने चेक से उसका पेमेंट भी कर दिया। मकान मालिक ने कहा _ देखिए चूंकि कोठी सालो से बंद पड़ी है इसलिए उसमें काफी मरम्मत की जरूरत होगी और रंग रोपण कराना होगा।तभी वो रहने लायक होगी ।मेरे ख्याल से इतनी बड़ी कोठी की मरम्मत और रंग रोपण में लगभग पांच _ दस लाख रूपए लगेंगे। सुनकर राम जी चौंक कर बोले _ क्या बोल रहे हैं इतने रुपए में तो एक छोटा सा फ्लैट खरीदा जा सकता है।

मैने एक अनुमान बताया है वैसे जितनी बड़ी कोठी है तो खर्चा भी उसी हिसाब से होगा न। खैर अब मुझे क्या करना है।अब वो कोठी आपकी हुई जितने सस्ते में करवा ले आपकी मर्जी । कोठी का पेपर लेकर जब रामजी घर पहुंचे घर वाले बहुत खुश हुए ।उनकी पत्नी प्रभा ने कहा _ आप बैठिए मैं चाय लेकर आती हूं।जब वे रसाई में गई देखा उनकी दोनो बहुएं खाना बना रही थी ।एक मसाला पीस रही थी और दूसरी आंटा गूंथ रही थी । वे खुद ही चाय बनाने लगी । प्रभा देवी ने खुश होते हुए कहा _ आज हमारा अपना मकान हो गया ।तुम्हारे बाबूजी अभी आए है लिखा पढ़ी के कराकर।आज घर में इस खुशी में पार्टी होगी ।खूब पुए पकवान बनायेंगे।दोनो बहुएं भी अपनी सास की बात सुनकर बहुत खुश हुई ।

बड़ी बहू लीला बोली हां मम्मी जी बहुत दिन से किराए के मकान में रहते रहते मन भर गया था।अब हमलोग अपने मकान में जायेंगे । बातो में सभी इतना मशगूल हो गई की देख नही पाई की उनकी सास प्रभा देवी का आंचलj गैस चूल्हा पर कब आ गया और उसमें आग लग गई ।जब उसकी आंच उनके कंधे तक आई तब उन्हे एहसास हुआ की उनकी साड़ी में आग लग गई है । वे डर से चिल्लाने लगी।उनकी दोनो बहुएं भी घबड़ा गई और चिल्लाने लगी ।उनकी समझ में नही आया की क्या करे।बाहर राम जी अपने दोनो पोतो के साथ बात चीत कर खेल रहे थे तभी अंदर से औरतों के चीखने की आवाज सुनकर वे फुर्ती से उधर भागे ।रसोई घर में जाकर देखा तो उनके होश उस गए।उन्होंने जमीन पर पड़े हुए बोरा उठाया और अपनी पत्नी के शरीर में लपेट दिया ।फिर पानी मांगकर उसके शरीर पर उड़ेल कर आग बुझा दिया । ये तो अच्छा हुआ प्रभा देवी को समय पर बचा लिया गया । तीनों औरते थर थर कांप रही थी । दोनो बहुओं ने अपनी सास को बेडरूम में ले जाकर उसकी साड़ी बदल दिया और जहा जहा जला हुआ था वहा बरनोल मलहम लगा दिया ।

अगले दिन रामजी और उनकी पत्नी दोनो उस कोठी को देखने के लिए गए। कोठी दूर से ही दिख रही थी।नजदीक जाकर देखा तो वहा एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था । गेट खोलकर जब अंदर बरामद में गए फर्र फर कर अनेक परिंदे और चमगादड़ इधर उधर उड़ने लगे। बड़ा डरवानी लग रही थी कोठी ।सारी कोठी धूल गर्दो और गंदगी से भरी हुई थी ।बाहर दीवालो पर काईयां जमी हुई थी ।कोठी की चहारदीवारी के अंदर जितने फूल पौधे थे सारे सुख चुके थे ।कुछ पेड़ पौधे जिंदा बचे थे लेकिन वे भी टेढ़े मेढे कुछ अजीब सी शक्ल के बड़े डरावने लग रहे थे।पूरी कोठी देखने के बाद जैसे ही वे दोनो कोठी के मुख्य दरवाजे पर बाहर निकलने के लिए पहुंचे दरवाजा अपने आप जोर की आवाज के साथ बंद हो गया ।प्रभा देवी डर से कांपने लगी । अरे डरो मत प्रभा दरवाजा हवा से बंद हुआ होगा ।राम जी ने अपनी पत्नी की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा ।वैसे अंदर ही अंदर वे भी डरे हुए थे इस अजीब सी वीरान और डरावनी कोठी को देखकर। लेकिन उनकी पत्नी न डर जाए इसलिए हिम्मत बनाए हुए थे । दरवाजा खुद ही खुल गया ।दोनो बाहर जब बड़े दरवाजे पर पहुंचे जी सड़क की तरफ खुलता था वहा काफी लोग जमा हो गए थे और बड़े आश्चर्य से दोनों को देख रहे थे। एक ने पूछा _ क्या कोठी को आपने खरीदा है । जी हा क्यों कोई बात है क्या । राम जी ने संकित होकर पूछा । नही बस ऐसे ही पूछा ।सालो बाद किसी को इस कोठी में देखा इसलिए पूछा ।क्योंकि उसका मालिक तो जबसे गया यहां आया ही नहीं ।कई लोग इस कोठी को खरीदे लेकिन फिर औने पौने दाम में बेचकर भाग खड़े हुए । उस आदमी ने कहा। आप क्या कह रहे।ऐसी क्या बात है इस कोठी में जो इसके मालिक इसे बेचकर भाग खड़े होते हैं।राम जी ने आश्चर्य से पूछा । ये सब तो आपको कोठी को खरीदने से पहले हमलोगो से आकर पूछना चाहिए था ।लेकिन अब ले ही चुके हैं तो छोड़िए भगवान आपकी रक्षा करे। एक दूसरे आदमी ने कहा। आप लोग मुझसे कुछ छुपा रहे है । साफ साफ बताए क्या बात है।रामजी ने चिंतित होकर पूछा । कुछ नही छुपा रहे है ।जब आयेंगे रहने के लिए तब आप खुद ही समझ जाएंगे। उनमें से एक आदमी ने कहा । तभी कुछ कुत्ते कोठी की तरफ मुंह करके जोर जोर से भौकने लगे ।रामजी और उनकी पत्नी को बड़ा आश्चर्य हुआ ।सामने तो कोई दिख नहीं रहा है फिर ये कुर्ते किसपर भौंक रहे हैं। एक अन्य आदमी ने डरते हुए कहा_ भाई साहब जो चीज इंसानों को नही दिखाई देती है वे कुत्ते और बिल्ली देख लेते हैं। इन कुत्तों को जरूर कुछ दिख रहा होगा तभी ये भौंक रहे हैं। जल्दी गेट बंद कीजिए और चलिए यहां से इतना कहकर वे लोग वहा से जल्दी जल्दी चले गए। रामजी और उनकी पत्नी को उनकी बाते और हरकते बड़ी अजीब लगी ।प्रभा देवी ने कहा_ ये लोग ऐसा क्यों कह रहे थे जी । अरे छोड़ो इनकी बातों को इन लोगो को जलन हो रही होगी की इतनी महंगी कोठी मैने खरीद लिया है इसलिए ये लोग हमे डरा कर भगा देना चाहते है ।हो सकता है इसमें इन लोगो का कोई स्वार्थ होगा ।राम जी ने कहा । मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा है।अभी जल्दी चलिए यहां से । प्रभा देवी ने कहा। राम जी ने मेन गेट ने ताला लगाया और वहा से आओ गाड़ी में बैठकर निकल गए। लेकिन प्रभा देवी को पता नहीं क्यों यह महसूस हो रहा था कोई और भी उनके साथ गाड़ी में बैठा है।लेकिन दिख नहीं रहा है। शायद उनका यह भ्रम होगा लोगो की बाते सुनकर ।इसलिए उन्होंने कुछ नही कहा और चुप रही ।

शेष अगले भाग_ 2 में